Indian Foreign Policy || भारत के विदेश संबंध

 भारत के विदेश संबंध Notes in Hindi

भारत के विदेश संबंध ( भाग -1)

Indian Foreign Policy : भारत के विदेश संबंध दोस्तों इस अध्याय में हम भारत के पड़ोसी देशों के साथ साथ भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत तथा भारत के दूसरे देशों के साथ बदलते संबंध जैसे भारत अमेरिका भारत रूस भारत चीन भारत इजरायल भारत और पाकिस्तान भारत और बांग्लादेश भारत और नेपाल भारत व श्रीलंका, भारत का परमाणु कार्यक्रम के बारे में अलग अलग भागों में विस्तार से जानेंगे |

भारत की विदेश नीति से तात्पर्य

Indian Foreign Policy – किसी भी देश द्वारा अन्य देशों के साथ संबंधों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति का प्रयोग किया जाता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है

अर्थात एक देश अन्य देशों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों साथ ही आंदोलनों और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जिन नीतियों को अपनाता है उन नीतियों को सामूहिक रूप से विदेश नीति कहा जाता है|

भारत की विदेश नीति

Indian Foreign Policy – भारत अनेकों चुनौतीपूर्ण अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में आजाद हुआ था, जिस समय भारत आजाद हुआ उस समय लगभग संपूर्ण दुनिया दो भागों में बैठी हुई थी अर्थात दो ध्रुवों में पूरा विश्व बैठा हुआ था एक तरफ एक तरफ अमेरिका तो दूसरी तरफ भूतपूर्व  सोवियत संघ|

ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ भारतीय विदेश नीति को तय किया| भारत की विदेश नीति पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की छाप है

पंडित नेहरू की विदेश नीति के तीन प्रमुख उद्देश्य

  • चुनौतीपूर्ण संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना
  • भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखना
  • भारत का आर्थिक विकास तेज करना

भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत

  • गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना
  • वसुधैव कुटुंबकम की स्थापना
  • अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत द्वारा स्वतंत्रता पूर्वक एवं सक्रिय भागीदारी
  • पंचशील की नीति
  • साम्राज्यवाद का विरोध करना
  • अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण ढंग से हल करना
  • निशस्त्रीकरण पर बल देना

शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना

शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में   “जियो और जीनेका महान सिद्धांत है

भारत की विदेश नीति की महत्वपूर्ण विशेषता है शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को बनाए रखना अर्थात अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय विवादों को आपसे बातचीत के माध्यम से समाप्त करना साथ ही अपने  समान दूसरे राष्ट्रों के अस्तित्व को महत्व देना किसी भी देश को अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना|

भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति

 गुटनिरपेक्षता की नीति से तात्पर्य है घुटनों की राजनीतिक से अलग रहते हुए अपना स्वतंत्र विचार अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रस्तुत करना यही गुटनिरपेक्षता की नीति कहलाती है|

आंदोलन की स्थापना

1955 में इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में हुए एफ्रोएशियाई सम्मेलन में हुआ| 1961 में बेलग्रेड में हुए प्रथम गुटनिरपेक्ष आंदोलन के साथ ही शंखनाद इस सम्मेलन में मुख्य रूप से 25 देशों ने भाग लिया था और यहीं से गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रारंभ हुआ|

संस्थापक

 गुटनिरपेक्ष आंदोलन के महत्वपूर्ण आन्दोलन  में पंडित जवाहरलाल नेहरू मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णों, घाना के  एन्क्रूमा, इसके निर्माता माने जाते हैं|

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीति का मुख्य उद्देश्य

भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई जाने का प्रमुख कारण था शीत युद्ध के दौरान परस्पर विरोधी खेमों एवं उनके द्वारा संचालित संगठनों जैसे नाटो एवं वारसा  आदि से अपने आप को दूर रखना|

यही कारण है की आवश्यकता पड़ने पर दोनों ही ध्रुव से आर्थिक एवं सामरिक सहायता प्राप्त कर सका साथ ही एशिया तथा अफ्रीका के नए स्वतंत्र देशों के मध्य भविष्य में अपनी महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थिति की संभावना को भागते हुए भारत ने अपनी एक नई पहचान बनाई|

गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई जाने के प्रमुख कारण

  • शीत युद्ध को अलगथलग रखने हेतु
  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की कामना
  • अपने आप को सैनिक गुटों से पृथक रखने की नीति
  • स्वतंत्र विदेश नीति का संचालन करना
  • दोनों ही गुटों से शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखना
  • भारत की भौगोलिक सुरक्षा हेतु

एफ्रो एशियाई एकता

  • भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौर में भारत ने एशिया और अफ्रीका के नवीन स्वतंत्र देशों के साथ संपर्क बनाए रखा
  • 1940 और 50 के दशक में पंडित नेहरू ने बड़े मुखुर शहर में ऐसे ही एकता की पैरोकार की
  • पंडित नेहरू की अगुवाई में मार्च 1947 में एशियाई संबंध सम्मेलन का आयोजन किया गया
  • पंडित नेहरू की अगुवाई में इंडोनेशिया की आजादी के लिए भी भरपूर प्रयास की
  • भारत द्वारा 1949 में आजादी के समर्थन में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया
  • भारत ने अनोपनिवेशीकरण की प्रकिया का समर्थन किया ।
  • भारत द्वारा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति का विरोध किया
  • वर्ष 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में एफ्रोएशियाई सम्मेलन का आयोजन किया और इसी आयोजन में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी थी
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