भारतीय  संविधान के मूल कर्तव्य

भारतीय  संविधान के मूल कर्तव्य                                             

मौलिक कर्तव्य क्या है? – भारतीय  संविधान के मूल कर्तव्य (Fundamental Duties of Indian Constitution) – भारत का संविधान बनाते सयम संविधान निर्माताओं ने मौलिक कर्तव्यों को अनावश्यक माना। अतः संविधान मे नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नही था। लेकिन जैसे–जैसे समय बीतता गया तथा संविधान समय की कसौटी पर कसा जाने लगा, यह अनुभव किया जाने लगा कि संविधान मे कर्तव्यों का समावेश होना चाहिए था।

शायद यही कारण होगा कि भारतीय संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों को समय की नजाकत समझते हुए इन्हें संविधान का महत्वपूर्ण अंग बनाया |

गरिमापूर्ण जीवन

आज यदि व्‍यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्राप्‍त है तो उसका कर्तव्‍य बनता है कि वह अन्‍य लोगों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का भी ख्‍याल रखे। यदि व्‍यक्ति को अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता प्‍यारी लगाती है तो यह भी जरूरी है कि उसमें दूसरों की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के प्रति धैर्य और सहिष्‍णुता भी विद्यमान हो ।

भारत सरकार ने संविधान दिवस की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर संविधान से समरसता कार्यक्रम के तहत मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता फैलाने का निश्चय किया है।

मौलिक कर्तव्यों के निर्माण के पीछे उद्देश्य

मौलिक कर्तव्यों के निर्माण के पीछे यह उद्देश्य है कि प्रत्येक नागरिकों को यह एहसास कराया जाए कि सर्वप्रथम राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं संप्रभुता है, अर्थात प्रत्येक कार्य एवं प्रत्येक लक्ष्य के आगे राष्ट्रहित होना चाहिए। भारतीय मौलिक कर्तव्यों में संविधान का पालन करना, तिरंगे का सम्मान, राष्ट्रगान के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखना एवं सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने जैसे विचारों को सम्मिलित किया गया हैं।

स्वर्ण सिंह समिति

42 वें संविधान संशोधन 1976 में “स्वर्ण सिंह समिति” की सिफारिशों के आधार पर 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए थे| भारतीय संविधान विशेषज्ञों नें रूस से प्रेरित होकर यह मूल कर्तव्य जोड़े गये तथा भारतीय संविधान के भाग – 4 क (अनुच्छेद 51- क में रखे गए) वर्तमान में 11 मौलिक कर्तव्य (2002 में 86 वें संविधान संशोधन द्वारा यह जोड़ा गया था) हैं

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य

भारतीय संविधान में 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर 10 मूल कर्तव्य जोड़े गये है।

1 (क) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और

उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र-धव्ज और राष्ट्र-गान का आदर करे |

2 (ख) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – स्वतंत्रता के लिए हमारे

राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे|

3 (ग) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे |

4 (घ) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे |

5 (ङ) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है |

6 (च) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे|

7 (छ) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे |

8 (ज) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह -वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे |

9 (झ) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे |

10 (ञ) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले |

11 (ट) भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह – यदि माता-पिता या संरक्षक है, 6 से 14 वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।

भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का महत्व

  • भारतीय संविधान की व्याख्या हेतु नीति निर्देशक सिद्धान्तोंकी तरह मौलिक कर्तव्यों का भी महत्वपूर्ण होना|
  • भारतीय संविधान द्वारा किसी कार्य की सिद्धि हेतु मूल कर्तव्यों का सहारा लिया जा सकता है|
  • भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों की वजह से मौलिक अधिकारों के साथ इनका संतुलन स्थापित हुआ है|
  • मूल कर्तव्यों से लोगों में सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक,राजनीतिक,राष्ट्रीय भावना आदि के साथ भावनाओं और मूल्यों में वृद्धि होती है|
  • मूल कर्तव्यों के कारण देश में सामासिक संस्कृति व राष्ट्र प्रेम की भावना बलवती होती है|
  • मूल कर्तव्यों का महत्व तब और बढ़ जाता है जब इनकी बदोलत अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास मिलता है और गर्व की अनुभूति होती है|

मूल कर्तव्यों की मुख्य आलोचना

  • मौलिक अधिकारों की तरह मूल कर्तव्य बाध्यकारी नहीं है|
  • मूल कर्तव्यों का हनन होने पर न्यायालय में नहीं जा सकते है|
  • मूल कर्तव्यों में कुछ मूल तत्वों में दोहराव होना| जैसे – संप्रभुता एकता अखंडता |
  • मूल कर्तव्यों की भाषा का जटिल होना|
  • कुछ मूलभूत विषयों पर स्पष्टता न होना|

वस्तुतःउपरोक्त मूल कर्तव्य निश्चय ही हमारी भारतीय संस्कृति और संविधान के प्रति हमारे कर्तव्यों के निर्वाह में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है | भले ही बाध्यता न हो लेकिन हमें अपने संविधान के आदर्शों व मूल्यों में हमेशा वृद्धि ही करनी है | और अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना है |

Leave a Comment