चुनाव और प्रतिनिधित्व
चुनाव
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता जिस विधि द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनती है उसे चुनाव ( निर्वाचन ) कहते हैं ।
प्रतिनिधि
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता जिस व्यक्ति का चुनाव करके सरकार में ( संसद / विधानसभा ) में भेजती है , उस व्यक्ति को प्रतिनिधि कहते हैं ।
चुनाव आयोग
भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक तीन सदस्यी चुनाव आयोग है । जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्त होते है । मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है देश के प्रथम चुनाव आयुक्त श्री सुकुमार सेन थे । मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 साल जो पहले हो , का होता है । वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोड़ा है ।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र
प्राचीन यूनानी नगर राज्यों में कम जनसंख्या होने के कारण जनता एक स्थान पर प्रत्यक्ष रूप से एकत्रित होकर हाथ उठाकर रोजमर्रा ( दैनिक ) के फैसले तथा सरकार चलाने में भाग लेते थे । जिसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं ।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
आधुनिक विशाल जनसंख्या वाले राष्ट्रों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र व्यवहारिक नही रहा । आम जनता प्रत्यक्ष रूप से एक स्थान पर एकत्रित होकर सीधे सरकार की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकती है । इसलिए अपने प्रतिनिधियों को भेजकर सरकार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई जाती है । इसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते है ।
सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार
किसी जाति, धर्म, लिंग एवं क्षेत्र के भेदभाव के बिना सभी 18 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के नागरिकों को मत देने का अधिकार ।
सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली
इस प्रणाली को भारत में अपनाया गया है। इसमें सबसे अधिक वोट पाने वाला विजय होगा चाहे जीत का अन्तर एक वोट ही हो, लोकसभा एवं विधानसभा सदस्य बनने के लिए संविधान में तय की गई योग्यताएं :-
- भारत का नागरिक हो ।
- आयु 25 वर्ष हो ।
- लाभ के पद पर ना हो ।
- पागल या दिवालिया ना हो ।
- अपराधिक प्रवृत्ति का या सजा याफ्ता ना हो
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समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
इस प्रणाली में प्रत्येक पार्टी चुनावों से पहले अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर देती है और अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है , जितनी सीटों का कोटा उसे दिया जाता है । चुनावों की इस व्यवस्था को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते है ।
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दो प्रकार होते हैं जैसे –
- इजराइल व नीदरलैंड में पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है और प्रत्येक पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में प्राप्त वोटों के अनुपात में सीट दे दी जाती है ।
- अर्जेटीना व पुर्तगाल में जहाँ पूरे देश को बहु – सदस्ययी निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है ।
भारत में “सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली” क्यों स्वीकार की गई ?
- यह प्रणाली सरल है , उन मतदाओं के लिए जिन्हें राजनीति एवं चुनाव का ज्ञान नहीं है ।
- चुनाव के समय मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होता है ।
- देश में मतदाताओं को दलों की जगह उम्मीदवारों के चुनाव का अवसर मिलता है जिनको वो व्यक्तिगत रूप से जानते है ।
भारतीय चुनाव प्रणाली की विशेषताएँ
भारत में सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली को अपना रखा है इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ है-
- यह प्रणाली सरल है ।
- इसमें प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाब देह होते है ।
- मतदाता एवं प्रतिनिधि का प्रत्यक्ष सम्पर्क रहता है ।
- यह प्रणाली क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व लोकतंत्रीय सिद्धान्त पर आधारित है ।
- इसमें खर्च कम आता है ।
- इस प्रणाली से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता ।
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट‘ प्रणाली
‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ प्रणाली का अभिप्राय है कि चुनावों में जिस भी प्रत्याशी को सबसे अधिक वोट (मत) मिलते हैं उसे ही विजयी घोषित कर दिया जाता है। इस प्रणाली में जो भी प्रत्याशी सर्वप्रथम सर्वाधिक मत हासिल करता है वही उस क्षेत्र में जीता हुआ माना जाता है । भारत में इस प्रणाली को अपनाएं जाने के निम्न दो कारण हैं-
- भारत में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है|
- अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की अपेक्षा ही है प्रणाली अधिक सरल है|
चुनाव आयोग को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु बदलाव अर्थात परिवर्तन
- चुनाव आयोग को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु उसमें निम्नलिखित बदलाव अर्थात परिवर्तन किए जाने चाहिए|
- चुनाव आयोग में वर्तमान आकार को बढ़ाते हुए उसमें चुनाव विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए|
- चुनाव के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा निर्वाचन में बेईमानी, गड़बड़ी एवं हिंसा की जाती है। ऐसे लोगों को दंडित करने के लिए चुनाव आयोग को न्यायिक शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए|
- चुनाव आयोग की गतिविधियों में राजनीतिक दलों के अनावश्यक हस्तक्षेप पर प्रभावी अंकुश लगाया जाना चाहिए|
- चुनाव आयोग अपने उत्तरदायित्व को उचित प्रकार क्रियान्वित करना कर सके इसके लिए उसे और अधिक शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए|
भारतीय निर्वाचन आयोग – कार्य एवं शक्तियाँ
- यह परिसीमन आयोग अधिनियम के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करता है
- यह निर्वाचक नामावलियों को तैयार करता है और समय समय पर उनमें सुधार करता है|यह सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करता है|
- यह चुनावों कार्यक्रम निर्धारित करता है और उसे अधिसूचित करता है
- यह चुनाव हेतु प्रत्याशियों के नामांकन स्वीकार करता है उनकी जाँच करता है
- यह राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उन्हें चुनाव चिन्ह प्रदान करता है
- यह चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किये गए प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय दलों का दर्जा प्रदान करता है
- यह राजनीतिक दलों की पहचान और चुनाव चिन्ह से सम्बंधित विवादों में न्यायालय की भूमिका निभाता
- यह निर्वाचन व्यवस्था से सम्बंधित विवादों की जाँच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करता है|
- यह राजनीतिक दलों को दूरदर्शन व रेडियो पर अपनी नीतियों व कार्यक्रमों के प्रचार के लिए समय सीमा का निर्धारण करता है |
- यह सुनिश्चित करता है कि आदर्श आचार संहिता का सभी दलों व प्रत्याशियों द्वारा पालन किया जाये |
- यह संसद सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राष्ट्रपति को सलाह प्रदान करता है |
- यह राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता से सम्बंधित मामलों में राज्य के राज्यपाल को सलाह प्रदान करता है |
- यह राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए जरुरी स्टाफ को उपलब्ध करने के लिए निवेदन करता है |
- यह चुनाव कार्यप्रणाली का सर्वेक्षण करता है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को संपन्न कराना सुनिश्चित करता है |
- यह अनियमितता व दुरूपयोग के आधार पर किसी निर्वाचन क्षेत्र के मतदान को रद्द कर सकता है |
- यह राष्ट्रपति को इस सम्बन्ध में सलाह देता है कि किसी राज्य में चुनाव कराये जा सकते है या नहीं|
चुनाव प्रणाली के दोष
- धन का अधिक खर्च करना।
- वोटों का खरीदा जाना।
- झूठा प्रचार।
- साम्प्रदायिकता हिंसा।
- जाति, धर्म के नाम पर वोट।
- राजनीति में अपराधियों का प्रवेश ।
चुनाव सुधारों के लिए प्रमुख सुझाव
- राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगनी चाहिए।
- राजनीतिक दलों के कार्यों को विनियमित किया जाना चाहिए।
- मतदाताओं की भागीदारी और जागरूकता सुनिश्चित की जाए।
- चुनाव तंत्र को प्रभावी और विश्वसनीय बनाना।
- धन और बाहुबल का प्रयोग बंद होना चाहिए।
- संसद में भी हर वर्ग, वर्ग और समाज को समानुपातिक हिस्सा दिया जाना चाहिए।
FAQ: महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न – भारतीय संविधान के किस भाग में चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई हैं ?
उत्तर – भाग – 15
प्रश्न – मतदाओं के लिए तस्वीर सहित पहचान पत्र को किस गर्ष से अनिवार्य कर दिया गया ?
उत्तर – 1993
प्रश्न – भारत के चुनाव आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर – भारत में चुनाव आयोग का गठन 25 जनवरी 1950 ई. को हुआ था यह एक स्थाई संवैधानिक निकाय हैं संविधान के भाग 15 के अनुच्छेद 324से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबंध हैं निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त से किया जाता है इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है
प्रश्न – प्रथम चुनाव आयुक्त कौन थे ?
उत्तर – सुकुमार सेन – 19 मार्च 1950 से लेकर के 21 दिसंबर 1958 तक
प्रश्न – किस संवैधानिक संशोधन द्वारा भारत में मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई ?
उत्तर – 61वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 – इस अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 326 का संशोधन करके मताधिकार की आयु 21 से घटकर 18 वर्ष कर दी गई है
प्रश्न – भारत में किनके चुनाव में “आनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली” अपनायी जाती है ?
उत्तर – राष्ट्रपति
प्रश्न – संविधान के किस धारा के अन्तर्गत निर्वाचन आयोग का गठन किया जाता है ?
उत्तर – 324
प्रश्न – राजनीतिक दलों को कौन मान्यता देता है ?
उत्तर – निर्वाचन आयोग
प्रश्न – महिलाओं को सबसे पहले मताधिकार किस देश ने दिया ?
उत्तर – न्यूजीलैण्ड
प्रश्न – लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु क्या होनी चाहिए ?
उत्तर – 25 वर्ष
प्रश्न – भारत में मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर – भारत में मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।