Class 11 Political Science Notes || सामाजिक न्याय 

सामाजिक न्याय Social Justice Question Answer in Hindi

Objective Question Answer

प्रश्न 1.प्राचीन भारत में न्याय का सम्बन्ध था?
(
क) धर्म
(
ख) ध्यान
(
ग) राज्य
(
घ) राजा
उत्तर (क) धर्म

प्रश्न 2.दि रिपब्लिककिसकी रचना है?
(
क) अरस्तू
(
ख) प्लेटो
(
ग) मैकियावली
(
घ) बोदां
उत्तर (ख) प्लेटो की

प्रश्न 3. सुकरात कौन था?
(
क) एक दार्शनिक
(
ख) एक राजनीतिज्ञ
(
ग) एक राजा
(
घ) एक विद्यार्थी
उत्तर (क) एक दार्शनिक

प्रश्न 4.हर मनुष्य की गरिमा होती है।यह किसका कथन है?
(
क) प्लेटो
(
ख) अरस्तू
(
ग) इमैनुएल काण्ट
(
घ) रॉल्स
उत्तर (ग) इमैनुएल काण्ट

प्रश्न 5. न्याय की देवी आँखों पर पट्टी इसलिए अँधे रहती है क्योंकि
(
क) उसे निष्पक्ष रहना है।
(
ख) वह देख नहीं सकती
(
ग) यह एक परम्परा है।
(
घ) वह स्त्री है।
उत्तर  (क) उसे निष्पक्ष रहना है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न    

प्रश्न 1. सामाजिक न्याय से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – सामाजिक न्याय से आशय एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था पर जोर देने से है जो समाज के विभिन्न वर्गों के लिये सुविधापूर्ण अधिकार एवं सुरक्षा उपलब्ध करवाता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा में आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय भी निहित है। सामाजिक न्याय की स्थापना में विधिक न्याय ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रश्न 1. सामाजिक न्याय का लक्ष्य क्या है?
उत्तर सामाजिक न्याय का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्राप्ति है ताकि समाज निरन्तर अपने निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ सके।

प्रश्न 2. न्याय के तीन सिद्धान्त कौन-से हैं?
उत्तर न्याय के तीन सिद्धान्त निम्नलिखित है-

समान लोगों के प्रति समान बरताव।

समानुपातिक न्याय।

विशेष जरूरतों का विशेष ध्यान।

प्रश्न 3. जॉन रॉल्स ने कौन-सा सिद्धान्त प्रस्तुत किया था?
उत्तर – राजनीतिक दार्शनिक जॉन रॉल्स ने न्यायोचित वितरण का सिद्धान्त प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 4. बुनियादी आवश्यकताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर – स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी बुनियादी आवश्यकताएँ हैं।

प्रश्न 5. मुक्त बाजार की एक विशेषता लिखिए।
उत्तर – मुक्त बाजार साधारणतया पूर्व से ही सुविधासम्पन्न लोगों के लिए काम करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. न्यायपूर्ण विभाजन के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर – न्यायपूर्ण विभाजन के लिए जरुरी है –

  • सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों। लेकिन इतना ही काफी नहीं है इसमें कुछ और अधिक करने की आवश्यकता है।
  • सामाजिक न्याय का सम्बन्ध वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है, चाहे यह राष्ट्रों के बीच वितरण का मामला हो या किसी समाज के अन्दर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच का। यदि समाज में गम्भीर सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ हैं तो यह आवश्यक होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों की पुनर्वितरण हो, जिससे नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके।
  • इसलिए किसी देश के अन्दर सामाजिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि न केवल लोगों के साथ समाज के कानूनों और नीतियों के सन्दर्भ में समान बरताव किया जाए। बल्कि जीवन की स्थितियों और अवसरों के मामले में भी वे बहुत कुछ बुनियादी समानता का उपभोग करें।
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 2. विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 1995 के क्या प्रावधान हैं?
उत्तर – विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 1995′ सर्वाधिक व्यापक है जो विकलांगों के लिए समग्र दृष्टिकोण रखता है। इसके अनसुार

  • विकलांगों को सरकारी नौकरियों में 3 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा तथा उन सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों को प्रोत्साहन दिया जाएगा जो पाँच या पाँच से अधिक विकलांगों को अपने यहाँ नौकरी पर रखेंगे
  • सरकार का उत्तरदायित्व है कि प्रत्येक विकलांग को 18 वर्ष की आयु तक नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करे
  • विकलांगों को घर बनाने के लिए व्यापार या फैक्टरी स्थापित करने के लिए अथवा विशेष मनोरंजन केन्द्र, विद्यालय या अनुसन्धान संस्थान खोलने के लिए भूमि का आवंटन रियायती दरों पर और प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा
  • इनके लिए रोजगार कार्यालय, विशेष बीमा पॉलिसियाँ तथा बेकारी भत्ते की व्यवस्था की जाएगी
  • विकलांगों के कल्याण के लिए एक मुख्य आयुक्त की नियुक्ति की जाएगी जो राज्यों के आयुक्तों द्वारा इन लोगों के कार्यों के लिए सामंजस्य स्थापित करे, इनके हितों की सुरक्षा हेतु। कार्य करे और उनकी शिकायतों की सुनवाई करे।

प्रश्न 3. भारत में सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर –  भारत में सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्तों में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं

  • अनुच्छेद 38 – राज्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की प्राप्ति और संरक्षण द्वारा, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं का मार्गदर्शन करता है, जनसामान्य की भलाई को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।
  • अनुच्छेद 39 – विशेषतौर पर राज्य अपनी नीति को इन चीजों की उपलब्धि के लिए निर्देशित करेगा
  • कि नागरिक, पुरुष और स्त्रियाँ, जीवन यापन के उचित साधनों पर समान अधिकार रखते हों।
    कि आर्थिक ढाँचे का क्रियान्वयन ऐसा न हो कि साधारण मनुष्यों का अहित हो और सम्पत्ति तथा उत्पादन के साधन केन्द्रित हो जाएँ।
  • कि कामगारों के स्वास्थ्य, शक्ति और बच्चों की सुकुमार उम्र का दुरुपयोग न हो।
  • अनुच्छेद 43 – श्रमिकों के लिए जीवनोपयोगी वेतन प्राप्त कराने का राज्य प्रयत्न करे।
  • अनुच्छेद 46 – राज्य समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों की विशेष रूप से वृद्धि करे और उनका सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से संरक्षण करे।
  • अनुच्छेद 47 – राज्य अपने नागरिकों के पौष्टिक स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सामाजिक स्वास्थ्य को उन्नत करने को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में समझे।।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 2. सामाजिक न्याय स्वतन्त्रता और सामाजिक नियन्त्रण में सन्तुलन बनाए रखने का प्रयास करता है।विवेचना कीजिए।

उत्तर : सामाजिक न्याय आधुनिक कल्याणकारी राज्य का निदेशक सिद्धान्त बन गया है। सामाजिक सुरक्षा के कदम, जैसे कि बेरोजगारी के मामले में सहायता, प्रसवकालीन लाभ और बीमारी, वृद्धावस्था तथा अपंगता के विरुद्ध बीमा, समाज के उन सदस्यों को सामाजिक न्याय दिलाने को उठाए गए हैं। जिनके पास अपने भरण-पोषण के साधन नहीं हैं और जो अपने परिवारों की देख-रेख नहीं कर पाते।

  • सामाजिक न्याय को मात्र सामाजिक सुरक्षा के बराबर समझना गलत होगा। यह सामाजिक सुरक्षा से अधिक बड़े अर्थ का सूचक है और यह कमजोर तथा पिछड़े हुओं पर विशेष ध्यान दिए जाने पर जोर देता है। सामाजिक न्याय तथा समाजवाद के अर्थों में प्रायः भ्रान्ति पैदा हो जाती है क्योंकि दोनों ही असमानताओं को हटाने का प्रयास करते हैं। इन दोनों शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयोग करना गलत है। समाजवाद अन्तिम विश्लेषण में उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार को समाप्त करने का उद्देश्य रखता है।
  • समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत उत्पादन के सभी साधन; जैसे-भूमि, पूँजी, कारखाने आदि सार्वजनिक अधिकार में ले लिए जाते हैं। एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में जो सामाजिक न्याय के लिए वचनबद्ध है इस सीमा तक जाना आवश्यक नहीं है। सामाजिक न्याय की माँगों को उस देश में भी पूरा किया जा सकता है जिसने पूँजीवाद को अपनी आर्थिक व्यवस्था का आधार बनाए रखा है। आवश्यक यह है कि कानून, कर और अन्य युक्तियों से यह सुनिश्चित कर दिया जाए कि अच्छे जीवन के लिए आवश्यक न्यूनतम हालात प्रत्येक सदस्य को अधिकाधिक रूप में उपलब्ध कराए जाएँ।
  • अनिवार्यतः इसका तात्पर्य समृद्ध लोगों के हाथ से समाज के गरीब वर्ग के हाथ में साधनों का हस्तान्तरण होना है, परन्तु इससे पूँजीवाद का अन्त नहीं होता। सामाजिक न्याय सदैव आर्थिक और सामाजिक असन्तुलनों को दूर करने का प्रयास करता है जैसा कि भारतीय उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा था-यह स्वतन्त्रता और सामाजिक नियन्त्रण में सन्तुलन बनाए रखने का प्रयास करता है।

प्रश्न 3. ‘मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेपविषय पर लघु निबन्ध लिखिए।
उत्तर – मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप को निम्नलिखित रूप में समझ सकते है –

मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप

  • मुक्त बाजार के समर्थकों का मानना है कि जहाँ तक सम्भव हो, लोगों को सम्पत्ति अर्जित करने के लिए तथा मूल्य, मजदूरी और लाभ के मामले में दूसरों के साथ अनुबन्ध और समझौतों में शामिल होने के लिए स्वतन्त्रत रहना चाहिए। उन्हें लाभ की अधिकतम मात्रा प्राप्त करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिद्वन्द्विता करने की छूट होनी चाहिए। यह मुक्त बाजार का सरल चित्रण है।
  • मुक्त बाजार के समर्थक मानते हैं कि अगर बाजारों को राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया जाए, तो बाजारी कारोबार का योग कुल मिलाकर समाज में लाभ और कर्तव्यों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित कर देगा। इससे योग्य और प्रतिभासम्पन्न लोगों को अधिक प्रतिफल प्राप्त होगा जबकि अक्षम लोगों को कम प्राप्त होगा। उनकी मान्यता है कि बाजारी वितरण का जो भी परिणाम हो, वह न्यायसंगत होगा।
  • हालाँकि, मुक्त बाजार के सभी समर्थक आज पूर्णतया अप्रतिबन्धित बाजार का समर्थन नहीं करेंगे। कई लोग अब कुछ प्रतिबन्ध स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे। उदाहरण के रूप में, सभी लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी जीवन-मानक सुनिश्चित करने के लिए राज्य हस्तक्षेप करे, ताकि वे समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने में समर्थ हो सकें।
  • लेकिन वे तर्क कर सकते हैं कि यहाँ भी स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा तथा ऐसी अन्य सेवाओं के विकास के लिए बाजार को अनुमति देना ही लोगों के लिए इन बुनियादी सेवाओं की आपूर्ति का सबसे उत्तम उपाय हो सकता है। दूसरों शब्दों में, ऐसी सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए निजी एजेंसियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जबकि राज्य की नीतियाँ इन सेवाओं को खरीदने के लिए लोगों को सशक्त बनाने का प्रयास करें।
  • राज्य के लिए यह भी आवश्यक हो सकता है कि वह उन वृद्धों और रोगियों को विशेष सहायता प्रदान करे, जो प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। लेकिन इसके आगे राज्य की भूमिका नियम-कानून का ढाँचा बनाए रखने तक ही सीमित रहनी चाहिए, जिससे व्यक्तियों के बीच जबरदस्ती और अन्य बाधाओं से मुक्त प्रतिद्वन्द्विता सुनिश्चित हो। उनका मानना है कि मुक्त बाजार उचित और न्यायपूर्ण समाज का आधार होता है।
  • कहा जाता है कि बाजार किसी व्यक्ति की जाति या धर्म की परवाह नहीं करता। वह यह भी नहीं देखता कि आप पुरुष हैं या स्त्री। वह इन सबसे निरपेक्ष रहता है और उसका सम्बन्ध आपकी प्रतिभा और कौशल से है। अगर आपके पास योग्यता है। तो शेष सब बातें बेमानी हैं।
  • बाजारी वितरण के पक्ष में एक तर्क यह रखा जाता है कि यह हमें अधिक विकल्प प्रदान करता है। इसमें शक नहीं कि बाजार प्रणाली उपभोक्ता के तौर पर हमें अधिक विकल्प देती है। हम जैसा चाहें वैसा चावल पसन्द कर सकते हैं और रुचि के अनुसार विद्यालय जा सकते हैं, बशर्ते उनकी कीमत चुकाने के लिए हमारे पास साधन हों। लेकिन, बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं के मामले में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ और सेवाएँ लोगों के खरीदने लायक कीमत पर उपलब्ध हों।
  • यदि निजी एजेंसियाँ इसे अपने लिए लाभदायक नहीं पाती हैं, तो वे उसे विशिष्ट बाजार में प्रवेश नहीं करेंगी अथवा सस्ती और घटिया सेवाएँ उपलब्ध कराएँगी। यही वजह है कि सुदूर ग्रामीण इलाकों में बहुत कम निजी विद्यालय हैं और कुछ खुले भी हैं; तो वे निम्नस्तरीय हैं। स्वास्थ्य सेवा और आवास के मामले में भी सच यही है। इन परिस्थितियों में सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
  • मुक्त बाजार और निजी उद्यम के पक्ष में अक्सर सुनने में आने वाला दूसरा तर्क यह है कि वे जो सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं, उनकी गुणवत्ता सरकारी संस्थानों द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्रायः अच्छी होती हैं। लेकिन इन सेवाओं की कीमत उन्हें गरीब लोगों की पहुँच से बाहर कर सकती है।
  • निजी व्यवसाय वहीं जाना चाहता है, जहाँ उसे सर्वाधिक लाभ मिले और इसीलिए मुक्त बाजार ताकतवर, धनी और प्रभावशाली लोगों के हित में काम करने के लिए प्रवृत्त होता है। इसका परिणाम अपेक्षाकृत कमजोर और सुविधाहीन लोगों के लिए अवसरों का विस्तार करने की अपेक्षा अवसरों से वंचित करना हो सकता है।
  • तर्क तो वाद-विवाद दोनों पक्षों के लिए प्रस्तुत किए जा सकते हैं, लेकिन मुक्त बाजार साधारणतया पूर्व से ही सुविधासम्पन्न लोगों के हक में काम करने का रुझान दिखाते हैं। इसी कारण अनेक लोग तर्क करते हैं कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए राज्य को यह सुनिश्चित करने की पहल करनी चाहिए कि समाज के सदस्यों को बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों।

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